मंगलवार, 20 मार्च 2012

केंद्र पर नार्थ ईस्ट को नजर अंदाज करने का आरोप


नई दिल्ली। असम गण परिषद के सांसद और नार्थ ईस्ट एमपी फोरम के महासचिव बिरेन बैश्य ने केंद्र पर उत्तर पूर्वी राज्यों की उपेक्षा करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि केंद्र उनके साथ में सौतेला व्यवहार कर रहा है। बिरेन ने मंगलवार को सदन में प्रधानमंत्री के बयान का विरोध करते हुए कहा कि केंद्र की गलतियों का खामियाजा उत्तर पूर्वी राज्यों को भुगतना पड़ रहा है।
बिरेन ने आरोप लगाया कि राष्ट्रपति के अभिभाषण के दौरान और प्रधानमंत्री के धन्यवाद भाषण के दौरान भी उत्तर पूर्वी राज्यों के बारे में कुछ नहीं कहा गया। उनकी समस्याओं पर केंद्र का कोई ध्यान नहीं है। उन्होंने कहा कि केंद्र उत्तर पूर्वी राज्यों में चीन और बांग्लादेश द्वारा की जा रही घुसपैठ पर लगाम नहीं लगा पा रहा है। इसकी वजह से इन राज्यों को खासा परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
असम गण परिषद के सांसद ने कहा कि चीन की सेना लगातार अरुणाचल प्रदेश में अपने सीमा क्षेत्र का उल्लंघन कर रही है, इसके बाद भी केंद्र खामोशी से सब कुछ देख रहा है। बिरेन ने प्रधानमंत्री के बयान का विरोध करते हुए कहा कि चीन के उत्तर पूर्व की गंगा कही जाने वाली नदी ब्रह्मपुत्र की धारा बदले जाने पर भी केंद्र खामोशी से सब कुछ देख रहा है। लेकिन इससे वहां की जनता को नुकसान हो रहा है। उन्होंने चीन के अतिक्रमण और अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा बताए जाने और ब्रह्मपुत्र का पानी रोके जाने को एक बड़ा मुद्दा बताया।
बीजेपी के सांसद बिजोया चक्रवर्ती ने भी एजीपी के सांसद की बात का समर्थन करते हुए कहा कि चीन लगातार भारतीय सीमा क्षेत्र का अतिक्रमण कर रहा है। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश की तरफ से हो रही घुसपैठ को रोकपाने में वहां मौजूद सीआरपीएफ के जवान नाकाम साबित हो रहे हैं। जिसके लिए जल्द ठोस कदम उठाने की जरूरत है।
असम गण परिषद की ही अन्य सांसद जोसफ टोपनो ने कहा कि केंद्र सरकार उत्तर पूर्वी राज्यों में बसे आदिवासियों के विकास की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया है।

नहीं लगेगी भगवद गीता के संस्करण पर रोक


मास्को। रूस की एक अदालत ने भारतीयों के पक्ष में अपना फैसला सुनाते हुए उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें भगवद् गीता के अनुवादित संस्करण पर रोक लगाने की बात कही गई थी। इस फैसले से वहां रह रहे भारतीय काफी खुश नजर आए।
कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि संस्करण पर रोक लगाने के लिए रखा गया पक्ष सही नहीं है।
गौरतलब है कि भगवद् गीता पर उभरे विवाद में एक के बाद एक अदालती फैसले भारतीयों के पक्ष में आए हैं। इससे पहले रूस के राजनीतिज्ञों ने भी भारतीयों का पक्ष लेते हुए कहा था कि भगवद गीता एक धार्मिक ग्रंथ है न कि कुछ और।

शनिवार, 11 अप्रैल 2009

झटके पे झटका, झटके पे झटका आखिर कब तक



झटका मीट शॉप। यह नाम है आने वाले आईपीएल का जो हमनें दिया है। अरे भई इस बेचारी आईपीएल को इतने झटके खाने पड रहे हैं कि इससे बेहतर नाम और कुछ हो ही नहीं सकता है। आने वाले दिनों में और देखते हैं कि इसको क्‍या कुछ सहना पडेगा। 

कमल कान्‍त वर्मा 

झटके पे झटका झटके पे झटका आखिर कब तक। आईपीएल को तो अपने नए सीजन में पता नहीं कितने ही झटके सहनें होंगे। पहले जगह बदलने का झटका, फिर पाकिस्‍तानी खिलाडियों को हटाने का झटका, कभी उनके चुनौती देने का झटका। और इन सभी से निजाद मिली तो अब स्‍टेडियम मै बैठने का ही झटका आईपीएल को लग गया। ये जोर का झटका घीरे से आखिर कब तक लगता रहेगा।

आखिर इस आईपीएल को कब तक सहन करने होंगे ये झटके। इतने झटकों से ऐसा लग रहा है जैसे आईपीएल 2 झटका मीट शॉप बन कर रह गई हो। अब कोई ये कहे कि खिलाडियों के बैठने को लेकर भला क्‍या झटका आईपीएल को लगा है। तो हुआ यूं है जनाब कि न्‍यूलैंडस जहां पर आईपीएल के शुरूआती मैच खेले जाने हैं वहां मौजूद सूइटस के सदस्‍यों ने कह दिया है कि वह अपनी जगह खाली नहीं करेंगे। तो भला फिर आपके और हमारे आईपीएल खिलाडी मैदान की सूखी और गीली घास को अपनी बैठने की जगह बनाएंगे क्‍या। सवाल तो बडा होने के साथ साथ चुनौतीपूर्ण भी है। सूइटस का ख्‍वाब दिखाने वाली आईपीएल के सामनें तो यह नाक कटनें जैसी स्थिति हो गई है। आखिर करे तो क्‍या करे। मगर यदि कोई हमसे पूछे तो हम तो उन सदस्‍यों के ही साथ हैं भई। आखिर कुर्सी का मामला है। भला कोई कैसे छोड दे। कुर्सी है तो सब कुछ है कुर्सी नहीं तो कुछ भी नहीं।

आईपीएल ने आज कुर्सी मांगी है कल पता नहीं क्‍या मांग ले, कहना मुश्किल है। हालाकि मोदी साहब ने अब ने वहां के सदस्‍यों को सूइट खाली करने के लिये कुछ ख्‍वाब दिखाने शुरू कर दिये हैं। वो कहते हैं कि आप टैंट में बैठ जाओ हम तुम्‍हें टिकटें भी फ्री दे देंगे। इसके अलावा खाना भी मुफत मिलेगा। ऐसा लग रहा है कि जैसे भारत में होने वाली किसी रैली में भीड को जुटाने की मंशा से यह बातें कही जा रही हैं। क्‍या आपको ऐसा नहीं लगता है। अब तो खिलाडियों की स्थिति पर एक ताजा तरीन शेर याद आने लगा है। वो कुछ ऐसा है कि फुटपाथ हर सडक का है आशियां हमारा, रहने को घर नहीं है सारा जहां हमारा। देखते हैं कि कुर्सी का यह मामला आखिर किस तरफ जाता है। जैसे भारत में सभी चुनाव के दौरान दूसरे की कुर्सी खींचने में लगे हैं वैसा ही कुछ हाल इन दिनों न्‍यूलैंडस के स्‍टेडियम में चल रहा है। मानों मोदी कह रहें हो यह कुर्सी हमका दे ठाकुर। फिलहाल तो हमारी निगांहें भी इनकी कुर्सी मामले पर है आप भी जरूर निगाह रखियेगा। 

मंगलवार, 7 अप्रैल 2009

ना चाहते हुए भी बन गए ना पप्‍पू


कमल कान्‍त वर्मा
अब सभी स्‍टार खिलाडियों के नाम बदले जाने के दिन हैं। वजह बना है आईपीएल। आईपीएल के चलते इन खिलाडियों के पीछे ना चाहते हुए भी पप्‍पू का तमगा लग गया है। बडे से बडा खिलाडी भी अब इस तमगे को लगाने से बच नहीं सकता है।


क्‍या आप पप्‍पू हैं, क्‍या आप पप्‍पू बनना चाहते हैं क्‍योंकि पप्‍पू वोट नहीं देता। यदि आपसे पूछा जाए तो जवाब मिलेगा नहीं। भली ही आप वोट ना डालें। मगर जब कुछ ऐसी बडी हस्तियां ही पप्‍पू बनने की फैरिस्‍त में शामिल हों जो आपके आदर्श हो सकते हैं तो क्‍या फिर भी आपका जवाब यही होगा। जीहां ऐसा ही कुछ हो रहा है इस बार अपने भारतीय खिलाडियों के साथ, जो ना चाहते हुए भी पप्‍पू बन गए हैं। इसके पीछे वजह बना है आईपीएल पार्ट टू। हर छोटे बडे सवालों का जवाब देकर आईपीएल पार्ट टू को साउथ अफ्रिका में करवाने वाले मोदी ने यह नहीं सोचा कि इससे भारतीय खिलाडियों की साख पर पप्‍पू कहलाने का क्‍या असर पडेगा। यह तो हमें भी नहीं पता है कि अब पप्‍पू बन चुके यह खिला‍डियों ने पहले कभी वोट दिया है या नहीं।

मगर एक बात तो सच है कि आईपीएल का रूख करने वाले खिलाडियों में भले ही पानी पिलाने वाला खिलाडी ही शुमार क्‍यों ना हो मगर वह आज पप्‍पू बन गया है। आईपीएल पार्ट टू को भारत में होने वाले चुनावों को देखते हुए ही बाहर कराने का मन बनाया गया था। मगर यह बात किसी के जहन में नहीं आई कि टीवी और रेडियो पर लगातार अपने को पप्‍पू ना बनने देने के लिये आने वाले विज्ञापनो पर इसका क्‍या फर्क पडेगा। इसके चलते जागो रे डॉट कॉम तो पूरी तरह से सो ही जाएगी क्‍योंकि यूवाओं को चुनाव के लिये जगाने वाली यह वेब साईट तो एक तरह से बेकार ही हो गई। भई जहां पर आम लोगों के स्‍टार खिलाडी पप्‍पू बनने की फैरिस्‍त का हिस्‍सा हों तो फिर भला वो कैसे पीछे हो सकते हैं। अब तो कुछ ना कुछ जरूर होकर ही रहेगा।

इन पप्‍पूओं को पप्‍पू बनने से रोका जाए इसके लिये भी किसी तरह का कोई इंतजाम चुनाव आयोग या फिर आईपीएल ने नहीं किया है। तो कैसा होगा यदि मास्‍टर ब्‍लास्‍टर सचिन को सचिन तेंदुलकर उर्फ पप्‍पू, भारतीय क्रिकेट टीम में द वाल के नाम से मशहुर राहुल द्रविड को राहुल द्रविड उर्फ पप्‍पू समेत दूसरे खिलाडियों को भी पप्‍पू कहकर पुकारा जाएगा।

रविवार, 2 नवंबर 2008

ऐसा विदाई समारोह पहले कभी देखने को नहीं मिला


अपने साथी खिलाडियों की बाहों में में बैठे अनिल कुंबले के चेहरे की मुस्‍कान उनकी इस विदाई समारोह की पूरी तरह से हकदार थी। यह विदाई उस जंबो की थी जिसने अपने दम पर भारत को कई बार जीत दिलाई थी। भारतीय क्रिकेट खिलाडियों ने जब इस विशाल दिलवाले जंबो को अलविदा कहा तो जंबो की आंखें भी कहीं छलक आंई।

कमल कान्‍त वर्मा



फिरोजशाह कोटला के मैदान की घड़ी में अभी करीब 3:05 मिनट का समय रहा होगा। मैदान में कुछ सन्‍नाटा छाया था। भारतीय खिलाडी कतार में खडे होकर किसी का इंतजार कर रहे थे। अचानक माहौल बदला और तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा स्‍टेडियम गूंज उठा। जिसका खिलाडि़यों को इंतजार था वह शख्‍स पवेलियन से निकलकर मैदान की तरफ बढ़ रहा था। यह थे भारतीय टेस्‍ट टीम के कप्‍तान अनिल कुंबले। प्‍यार से जंबों के नाम से मशहूर इससे पहले इसी फिरोजशाह कोटला मैदान पर अपनी रिटायरमेंट का ऐलान कुछ देर पहले ही कर चुके थे। ऐसी विदाई की उम्‍मीद शायद ही किसी भारतीय खिलाड़ी ने की हो। भारतीय क्रिकेट में विकेट के बादशाह को जो विदाई मिली वह शायद ही इससे पहले किसी को मिली हो। यही था जंबो का रूतबा। भारतीय क्रिकेट के इतिहास में पहला मौका था जब किसी खिलाड़ी और कप्‍तान ने इस तरह से मैदान पर अपनी रिटायरमेंट का ऐलान किया हो। यह पल भारतीय टीम के लिये भावुकता से भरा था। वह एक ऐसे खिला‍डी को विदाई दे रहे थे जो अपने अके‍ले के दम पर भारतीय टीम को जीत का सहरा पहनाने की हिम्‍मत रखता था।

1990 में अपने करियर का आगाज करने वाले अनिल कुंबले ने जब अपनी आंखों पर चश्‍मा लगा कर गेंदबाजी संभाली थी तो किसी ने नहीं सोचा था कि यह शख्‍स 18 साल तक क्रिकेट से जुड़ा रहकर इतनी बु‍लंदियों को छू लेगा। चेहरे पर कुछ दमदार मुंछे अनिल कुंबले की पहचान हुआ करती थी। मगर पहले चश्‍मा गायब हुआ फिर मूंछे और सामनें था अनिल कुंबले का एक नया रूप एक नया नाम जंबो। भला कौन भूल सकता है कुंबले के वो दस विकेट जो इसी मैदान पर पाकिस्‍तान के खिलाफ उन्‍होंने लिये थे। यह भारत के लिये पहला मौका था जब किसी भारतीय ने एक ही पारी में दस विकेट लिये हों। जिम लेकर के 1956 में बनाए रिकार्ड को तोड़ने वाले जंबो दुनिया के दूसरे ऐसे खिलाड़ी बने जिसने एक ही पारी में इतनी विकेट ली हों। तभी तो जंबो जंबो हैं। आज भी कुंबले की विदाई का गवाह यही मैदान बना। शायद इसकी वजह उनकी चोट या फिर वही दस विकेट रहे हों। अजहर की कप्‍तानी में इसी फिरोजशाह कोटला मैदान पर कुंबले ने पाकिस्‍तान के खिलाफ दस विकेट लेकर जो इतिहास रचा वह आज भी कायम है। इस खिलाड़ी की विकेट की भूख कभी कम होती दिखाई नहीं दी।

ऑस्‍ट्रेलिया के खिलाफ उनकी सबसे ज्‍यादा विकेट रहीं हैं। 2004 में सिडनी में ऑस्‍ट्रेलिया के खिलाफ उन्‍होंने एक ही पारी में आठ विकेट चटकाई थीं। 619 टेस्‍ट विकेट अपनी झोली में डालने वाले कुंबले के नाम कई रिकॉर्ड दर्ज है। कुंबले ने क्रिकेट को अपना सौ फिसदी प्रदर्शन दिया है। भला वेस्‍टइंडीज की वह पारी कौन भूल सकता है जब कुंबले अपना जबड़ा टूटने के बाद मुंह पर पटटी बांधकर मैदान पर आए थे और लारा का विकेट ले उड़े थे। मुंह खुलने में दर्द का एहसास उनके चेहरे पर था फिर भी उनके चेहरे से विकेट लेने की खुशी हटी नहीं थी। फिरोजशाह का यह तीसरा टेस्‍ट मैच भी कुछ ऐसा ही रहा जब कभी कंधे के दर्द से कुंबले को बाहर बैठना पड़ा तो कभी उंगली के फट जाने के कारण मैदान से मजबूरन जाना पड़ा। मगर इन सभी के बाद टीम में शामिल होकर टीम की हौंसला अफजाई करना वह कभी नहीं भूले तभी तो उंगली में ग्‍यारह टांके लगने के बाद भी मैदान में आकर उन्‍होंने ना सिर्फ बॉंलिंग ही की बल्कि कैच भी लपका बिना यह परवाह किये कि डॉक्‍टर ने उन्‍हें गेंदबाजी करने से मना किया है। यह जज्‍बा जंबो का ही हो सकता है।

भारत में उनकी बराबरी करने वाला कोई गेदबाज नहीं है। कुंबले ने जिन खिलाडियों के सा‍थ अपना सफर शुरू किया था वह भले ही आज मैदान से बाहर हों मगर उनकी गेंदबाजी का कायल हर कोई है। फिर चाहे वह अहजर, कपिल, रविशाश्‍त्री हों या कोई और। फिरोजशाह के मैदान पर आज का नजारा जंबो के लिये हमेशा यादगार बनकर उनके दिल और दिमाग में बसा रहेगा। अपनी बॉलिंग में बेहद आक्रामक दिखाई देने वाले कुंबले अपने स्‍वभाव से बेहद नरम हैं। इस नरम दिल स्‍वभाव वाले व्‍यक्तित्‍व को पूरी दुनिया में क्रिकेट खिलाड़ी बेहद प्‍यार करते हैं। अब जब क्रिकेट के मैदान पर दर्शक उनकी बॉलिंग का जादू नहीं देख पाएंगे तो एक कमी तो जरूर रहेगी ही। जंबो ने अपने प्रदर्शन के दम पर सबसे ज्‍यादा बार भारत को जीत दिलाई है। दुनिया में सबसे ज्‍यादा टेस्‍ट विकेट लेने वाले कुल तीन खिलाडियों में जंबो तीसरे नम्‍बर पर है। कुंबले के रिकॉर्ड की बराबरी करना कोई आसान काम नहीं है। इसके लिये किसी भी खिला‍ड़ी को कुंबले ही बनना होगा, तभी वह इसको अंजाम दे सकेगा। अपने इस आखिरी मैच के बाद उनके इस विदाई समारोह में ना सिर्फ वहां मौजूद खिलाड़ी शामिल हुए बल्कि पूरे खेल प्रेमी इसमें शामिल थे। मैदान में अपनी साथी खिलाडियों की बाहों पर बैठे जंबो का हर दर्शक ने खडे होकर अभिवादन किया और उनके योगदान को सराहा।

गुरुवार, 16 अक्तूबर 2008

आसान नहीं रही सचिन के महानायक बनने की राह

सचिन को जिस मुकाम पर आज लोग पाते हैं वह उनकी बरसों की मेहनत का फल है। घंटो रात में मैदान पर टिक कर अभ्‍यास करना यह सचिन की ही बूते का काम है। क्रिकेट की इस सदी के महानायक हैं सचिन। टेस्‍ट क्रिकेट में सबसे ज्‍यादा रन बनाने से कुछ कदमों की दूरी पर अभी सचिन खडें हैं। सचिन का इतिहास बताता है कि उन्‍हें चुनौती देने वालों का हाल क्‍या हुआ है। फिर चाहे वह ओलंगो हो या‍ फिर कोई और।
कमल कान्‍त वर्मा
क्रिकेट के बेताज बादशाह सचिन तेंदुलकर के नाम भले ही बल्लेबाजी के अनगिनत रिकार्ड दर्ज हो गए हों लेकिन उनके लिये यह राह आसान इतनी आसान कभी नहीं रही। इस मुकाम तक आने के लिये सचिन ने घंटो मैदान पर बिताए हैं। तब कहीं जाकर उनको यह मुकाम हासिल हुआ है। उनके करीबी मित्र और पूर्व क्रिकेटर प्रवीण आमरे उस दौर के साक्षी रहे हैं जब बारह बरस की उम्र में मास्टर ब्लास्टर अकेले घंटों मैदान पर अभ्यास करता रहता था। लागों को लगता है कि सचिन बहुत आसानी से इस मुकाम तक पहुंचा है। लेकिन वह बखूबी जानते हैं कि उसने कितने पापड़ बेलने पडे हैं। बारह साल की उम्र में वह एक एक शॉट सीखने के लिये रात होने तक अकेला मैदान पर डटा रहता था जबकि बाकी सारे लड़के घर लौट जाते।
आमरे मुंबई के शारदाश्रम विद्या मंदिर में सचिन के साथी रहे है। क्रिकेट के छात्र से मास्टर बनने का सचिन का सफर काफी संघर्षपूर्ण रहा है। बचपन से ही एक साथ रहने वाले आमरे को लगता था कि सचिन एक दिन जरूर क्रिकेट का महानायक बनेगा। उसका अनुशासन जुनून और दबाव में अच्छा खेलने की कला बचपन में ही जाहिर हो गई थी। आज सचिन टेस्ट क्रिकेट में ब्रायन लारा का सर्वाधिक 11953 रन का विश्व रिकार्ड तोड़ने से महज 15 रन दूर खड़े हैं। सचिन कल से मोहाली में आस्ट्रेलिया के खिलाफ शुरू हो रहे दूसरे टेस्ट में यह मुकाम हासिल कर सकते हैं। आमरे मानते हैं कि फिलहाल सचिन का ध्यान रिकार्ड पर नहीं बल्कि श्रृंखला पर होगा। आमरे खुद भी एक अच्‍छे क्रिकेटर है।
वह उन चंद खिलाडियों में शुमार है जिन्‍होंने अपने करियर के पहले ही टेस्‍ट में शतक ठोका है।
सचिन कभी रिकार्ड के बारे में नहीं सोचता। उन्‍हें इस पर पूरा यकीन है कि वह इस समय टीम की जीत के बारे में ही सोच रहा होगा। आमरे के मन में अभी भी वो बचपन की यादें ताजा हैं। उन्होंने कहा आचरेकर सर तेंदुलकर के बचपन के कोच रमाकांत का अर्जुन था सचिन। सर उसे हर नाबाद पारी के लिये एक रूपये का सिक्का देते थे और उसका विकेट लेने वाले गेंदबाज को भी एक रूपया मिलता था। सचिन के लिये सर से मिले वह सिक्के आज भी उसकी सबसे कीमती धरोहर है। सचिन को अपनी चीजों को सीखने की ललक इतनी थी कि एक बार किसी ने उन्‍हें टेबिल टैनिस में जीतने के लिये चुनौती दे डाली। फिर क्‍या था सचिन ने टेबिल टेनिस को सीखने में करीब छह महीने का वक्‍त लिया।
छह महीने कड़ी मेहनत के बाद सचिन ने उस लडके को टेबिल टेनिस में धूल चटाई। यही चीज आज भी उनके अंदर जिंदा है। आज भी जब कभी कोई उन्‍हें चुनौती देता है तो वह खामोश रहते हैं मगर उनका बल्‍ला उन्‍हें जवाब देता है। ऐसा ही कुछ हुआ था गेंदबाज ओलंगो के साथ भी। आमरे ने तेंदुलकर के बाद अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण किया लेकिन जल्दी कैरियर खत्म होने के कारण वह बाद में मुंबई रणजी टीम के कोच बन गये जिसके लिये सचिन भी खेलते हैं। तेंदुलकर की बल्लेबाजी पर गहरी नजर रखने वाले आमरे ने इतने बरस में उनकी शैली में आये बदलावों के बारे कहते है कि दो दशक तक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलने पर बदलाव आना लाजमी है।
सचिन ने अलग अलग विकेटों के मुताबिक खुद को ढाला है और यही वजह है कि वह दुनिया भर में वह रन बना सका है। सौरव गांगुली के बाद सचिन के क्रिकेट से संन्यास की अटकलों के बारे में उन्होंने कहा कि यह फैसला इस चैम्पियन बल्लेबाज पर ही छोड़ देना चाहिये। सचिन ने क्रिकेटप्रेमियों को खुशी के इतने पल दिये हैं। वह अपने खेल का मजा ले रहा है और उसे ही यह तय करने देना चाहिये कि कब तक उसे खेलने में लुत्फ आ रहा है। उसे अपनी मर्जी से संन्यास का फैसला लेने की सहूलियत दी जानी चाहिये।

शुक्रवार, 26 सितंबर 2008

वर्ल्‍ड कप को वो आखिरी ओवर

आईसीसी के टी-20 वर्ल्‍डकप की जीत को एक साल पूरा हो गया है। मगर इस मैच की याद आज भी भारत और पाकिस्‍तान के क्रिकेट प्रेमियों के जहन में ताजा है। मिसबाह को आज भी टी-20 फाइनल का वो आखिरी ओवर याद है। एक कैच ने इस मैच का रूख ही पलट कर रख दिया।

कमल कान्‍त वर्मा

टी-20 का वर्ल्‍ड कप फाइनल और आमने सामने चित परीचित अंदाज में भिडने वाली भारत और पाकिस्‍तान की टीमें। यह शाम इस वर्ल्‍ड कप के लिये बेहद अहम थी। पाकिस्‍तान जीत से सिर्फ 12 रन दूर था। मैच का आखिरी ओवर और खिलाडियों के साथ-साथ दर्शकों के माथे पर लकीरें साफ दिखाई दे रहीं थीं। किसी के हाथ भारत की जीत के लिये उठे तो किसी के पाकिस्‍तान की जीत के लिये। जोहन्‍सबर्ग के इस स्‍टेडियम ने दर्शकों में इतना उतावला पन शायद पहले कभी नहीं देखा हो। क्रीज पर मिसबाह-उल-हक के साथ दूसरे छोर पर मो. आसिफ डटे थे। जीतने का जज्‍बा पूरी तरह से दोनों खिलाडि़यों में दिखाई दे रहा था। वहीं महेन्‍द्र सिंह धोनी आखिरी को इस आखिरी समय में एक अदद अच्‍छे गेंदबाज की जरूरत थी। मिसबाह काफी हद तक जानते थे कि धोनी के पास जोगिंदर सिंह एक विकल्‍प के तौर पर मौजूद है। आखिरी ओवर में 12 रन की जरूरत को पूरा करने के लिये मिसबाह स्‍ट्राइक लेने के लिये पूरी तरह से तैयार थे।

जोगिंदर सिंह अपने ओवर की पहली गेंद फेंकी तो मिसबाह कुछ बीट हुए। इस गेंद के साथ दर्शकों की सांसे कुछ देर के लिये रूकी हुई थीं। धोनी के ज्‍यादातर फील्‍डर बाउंडरी की तरफ निगाह लगाए बैठे थे। जोगिंदर सिंह की दूसरी बॉल के साथ मिसबाह ने पूरी जान से बॉल को खिलाडियों के उपर से उठाकर बाउंडरी के बाहर फेंक दिया। मिसबाह के इस एक शॉट ने भारतीय खेमे में खलबली पैदा कर दी। जहां पाकिस्‍तान के प्रशंशक खुशी से उछल पड़े, तो वहीं भारतीय समर्थकों के चेहरे पर तनाव की लकीरें साफ दिखाई दे रहीं थीं। धोनी ने एक बार फिर जोगिंदर से बात की और अपनी पॉजीशन पर चले गए। जोगिंदर की तीसरी गेंद ने एक बार फिर से भारत की उम्‍मीदों पर पानी फेर दिया। यह बॉल वाईड थी। एक रन के इजाफे ने एक बार फिर से भारत की धडकनें तेज कर दीं। आखिरी ओवर ने वर्ल्‍ड कप के इस फाइनल को बेहद रोमांचक बना दिया था। भारतीय टीम की निगाह मिसबाह पर लगी थी। भारत को तो विकेट चाहिए था या फिर उनके लिये जरूरी था कि बाकी बची गेंदों पर कोई रन ना बन सके। पाकिस्‍तान को जीतने के लिये अब महज पांच रन चाहिए थे।

आखिरी ओवर की तीन बॉल फेंकी जानी बाकी थी। मिसबाह स्‍ट्राइक पर एक बार फिर से अपने आक्रामक मूंड में दिखाई दे रहे थे। जोगिंदर ने अपनी बॉल के लिये दौडना शुरू किया एक बार फिर से धड़कनों का उफान तेज हो गया था। जब तक बॉल ने क्रिज पर टप्‍पा खाया मिसबाह अपनी पॉजीशन मे आ गए थे। मिसबाह ने गेंद को फाईनलेग से स्‍कूप करने के प्रयास किया तो वह उनकी सोच से ज्‍यादा उपर बल्‍ले पर आ गई। नतीजा यह हुआ कि गेंद एक बार फिर से विकेट के पीछे उंची उछल गई। वहां विकेट के पीछे फाईन लेग पर मौजूद श्रीसंत ने इसको आसानी से अपने हाथों में ले लिया। इस एक कैच ने भारत को जहां जीत दिला दी तो वहीं पाकिस्‍तान को पहले टी-20 विश्‍व कप में हार देखनी पड़ी। श्रीसंत के हाथों में कैच जाने से पहले मिसबाह अपना दूसरा रन पूरा करने वाले थे। जैसे ही श्रीसंत के हाथों में बॉल पड़ी वहीं मिसबाह अपने को रोक नहीं पाए। इस कैच के साथ ही मिसबाह अपने बल्‍ले के सहारे पूरी क्रीज पर अकेले बेहद मायूस दिखाई दे रहे थे।

दूसरे छोर पर मौजूद आसिफ, मिसबाह के पास पहुंचे और उन्‍हें दिलासा दी। इस एक शॉट ने पाकिस्‍तान की किस्‍मत ही बदल कर रख दी। धोनी ने इस मैच के साथ अपनी कप्‍तानी को मजबूती दी। मिसबाह को अपने इस शॉट की उम्‍मीद नहीं थी। यह शॉट मिसबाह के लिये कभी ना भूलने वाला शॉट रहा। हाल ही में दिल्‍ली में हुए सुई नोर्दन गैस और दिल्‍ली के बीच हुए मैच के दौरान मिसबाह ने यह बात मानी कि यह शॉट उनके जीवन का ना भूलने वाला शॉट रहा। मगर मिसबाह को इस शॉट को लेने के लिये टीम के किसी सदस्‍य ने उन्‍हें दोष नहीं दिया। इस वर्ल्‍डकप को जीतने के साथ ही भारत ने अपने को वर्ल्‍ड चैंपियन बनाने का सपना भी संजो लिया।